आप अपने घरों में
छत्तीस कोटि मुण्डे मुण्डे मतिभिर्न्ना
आपस में छत्तीसी रिश्ता बरतने वाले
देव अराधना में आकंठ डूबे-तैरें
स्वार्थ कर्म में पड़कर
स्वकर्म-धर्म छोड़
उनके जूते चाटें तलवे सहलाएं
आप फिर भी आधुनक
कथित रामराज्य की शंबूक प्रताड़ना
औ कृष्ण काल के एकलव्य प्रति
द्रोणछल को बखूबी
अपनी सामंती मानसिकता में
आप अब भी सहलाएं पुचकारें
दलितों के प्रति वही पूर्वग्रही पुरा सोच सम्हालें
आप फिर भी आधुनिक
आप लोकतंत्री न्यायी होकर भी भंवरी-न्याय सुनाए
औ मानवता की परिभाषा भूल जाएं
किसी अवयस्क ब्राह्मण पुत्र को देव मानकर
उसकी चरण-बंदगी पर उतर जाएं
आप जज की कुर्सी पर बिराजकर भी
योर आनर मी लार्ड जैसे
रैयतग्राही एवं सामंती सुख संबोधन को
इस आधुनिक वैज्ञानिक समय में भी
बेहिचक निगलें पचाएं
आप फिर भी आधुनक
आप आदमी आदमी में भेद रचे
रचे भेद को तादम नित गहरा बनाये
इस भेद रोटी को सेंक सेंक कर
सामाजिक वर्चस्व का समूचा श्रीफल
बिना डकारे ही खा जाएं
खा खाकर बेशर्मी से फूलें अघाएं
और दलितों को हक-अधिकार से
वंचित रख जाएं
आप फिर भी आधुनिक
आप दिल-दिमाग में रख छत्तीस का रिश्ता
पशु-पक्षी जड़-जाहिल को भी देव मान अराधे
आप श्वानों को भी अपनी गोद में थामें
चूमें-चाटेंं उन पर बेहिसाब प्यार लुटाएं
पर दलितों पर झज्जर-दुलीना बरपाने की
हद नीचता दिखलाने से बाज न आए
आप फिर भी आधुनिक
आप दुनिया का हर आधुनिक ठाट अपनाना चाहें
पर स्मृति-रामायण की कूप मानसिकता
और बाट न हरगिज छोड़ें
तन पर चढ़ जाएं लाख लिबास आधुनिक
मन को आपके
एक कतरा भी आधुनिकता न सुहाए
मनु-रक्त ही दौड़े आपकी रग-रग में रह रह
आप फिर भी आधुनिक
आप आधुनिकता को
जाने-अनजाने समझना न चाहें
आधुनिकता की राह में
लाख रोड़े अटकाएं
आधुनिक सोच को दिखाएं खूब अंगूठा
आपके अमानुष सोच के बजबजाते कूड़े-कचरे से
चाहे आए आधुनिकता की नकली खुशबू
आप फिर भी आधुनिक
फिर भी आधुनिक - मुसाफिर बैठा
1:28 am
गंगा सहाय मीणा
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