ईश्वर के रहते भी - मुसाफिर बैठा

ईश्वर के रहते भी
क्यों मंदिर आती जाती
किसी श्रद्धासिक्त महिला की
राह बीच लुट जाती है इज्जत
यहां तक कि जब-तब
मंदिर के प्रांगण के भीतर भी

क्यों कुचलकर हो जाती है
भक्तों की असमय दर्दनाक मौत अंग-भंग
बदहवास भगदड़ की जद में आकर
मंदिर की भगवत रक्षित देहरी पर ही

ईश्वर के रहते भी
क्यों जनम जनम का अपराधी
और कुकर्मी भी बना जाता है
ईश्वर के नाम
कोई भव्य दिव्य सार्वजनिक पूजनगृह
और मनचाहा ईश्वर को
बरजोरी बिठा आता है वहां
अपनी मनमर्जी
और उसके कुकर्मों-चाटुकर्मांे का भरा घड़ा भी
इसमें कतई नहीं आता आड़े

ईश्वर के रहते भी
क्यों चमरटोली का धर्मभीरू इसबरबा चमार
बामनटोली के भव्य मंदिर को
पास से निरखने तक की अपने मन की साध
पूरी करने की नहीं जुटा पाता है हिम्मत
और अतृप्त ही रह जाती है
उसकी यह साधारण चाह
असाधारण अलभ्य बनकर

ईश्वर के रहते भी
क्यों शैतान को पत्थर मारते मची भगदड़ में
मक्का में बार बार कई अल्लाह के बंदे
हो जाते है अल्लाह को प्यारे
और उस शैतान का बाल भी बांका नहीं होता
और चढ़ा रह जाता है शैतानी खंभे पर वह
ईश्वर और उसके भक्तों के मुंह चिढ़ाता

ईश्वर के रहते भी
क्यों सब कुछ तो बन जाता है इंसान
पर इंसान बने रहने के लिए उसे
पड़ता है नाकों चने चबाना ।

2004

1 Response to “ईश्वर के रहते भी - मुसाफिर बैठा”

Unknown ने कहा…

kyoki ye ishwar tay karega ke papi ka ghada kab bharega or usike anusaar use dandit karega lekin hamare pass subri yani ke dherya nahi hai mandir me bhagdad bhi tabhi hoti hai,ham kon hote hai kisi shetan ko pathar marne wale papi kehne ka hak use hota hai jisne paap na kiya ho...ap ki kabita behad achhi hai lekin me is liye likh rahi hu kyoki ishwar kabhi galat nahi karte

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